Book Title: Jain Hit Shiksha Part 01
Author(s): Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publisher: Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 209
________________ ( २०१ । छै, त्यां सगला ने लेखवणा बापा ॥ थो० ॥ ४७ ॥ तो सगला ने बाप लेखवतो लाजे, ओ मत उगरे लेखे कूड़ो। जे गुण बिन आकार बांदे अज्ञानी, ते कर रह्या मूरख फेन फितूरो ॥ था० ॥ ४८॥ उगरे मा रे उणियारे बौंदगी हुतो, तिण धन खरच ने परण ल्यायो। जे गुण बिना आकार बांदे, तिण लेख या दोना ने लेखणी मायो ॥ था० ॥ ४६॥ कै दोन्या ने लखवले स्त्रो. आपणो श्रद्धावाला रो देखो ले न्यायो। बले माय ने उणहारे अनेक लुगायां, ते सगली में लेखवणी मायो । था० ॥ ५० ॥ बले बहनोई काका बाबादिका रों, आकार के नाम अनेक, थारो आकार प्रमाणे नहौं लेखवे तो, छोड़ देनौ कूड़ी जाबक टेक ॥ था० ॥ ५१ ॥ काई बाई छै हिंसाधर्मी अनारज, तिगा पुत्र जायो ते भरतार ने आकारो। आकार बांद तिगा बाई रे लेख, यां दीया ने लेखव लेगो भरतारो॥ था० ॥ ५२ ॥ के दाया ने बेटा लेखव ले णा, तो उगरी श्रद्धा में वा प्रणवौण पूरी। भरतार बेटी जुदो गिणे तो, उण गै श्रद्धा रे लेखे पड़सौ कूड़ी ॥ था. ॥ ५३ ॥ इत्यादिक जीव अनौव रा घणा है, कोधा अकौधा अनेक आकार, पिण गरज सरे नहीं आकार बाद्यां, थे समझो रे समझो आण बिचार ॥ था० ॥५४॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243