Book Title: Jain Hit Shiksha Part 01
Author(s): Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publisher: Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner

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Page 220
________________ ( २१२ ) ॥ दोहा ॥ नाम घापना द्रवा तयो, यां तीनां रो को विस्तार । ए गुणा निगुणा भाव रहित मे, एकगा नहीं लिगार ॥ १ ॥ गुण विन नाम निकेवलो, गुण विन घापना आकार । जे द्रव्य निक्षे पो गुण बिना, ए तीनों ई नि मा असार ॥ २ ॥ ति कारण मोटो कह्यो, गुण सहित निक्षेपो भव । च्चा निक्षेपा मांहि भाव है, तिण से विग्ला जागे सार ॥ ३ ॥ भाव निक्षेप रूड़ौ रौतसूं, कोलखज्यो नर नार । इगा ओलखियां विन जौव र, घट में घोर अंधार ॥ ४ ॥ जे जे द्रवा रा नाम है, नाम जिसा गुण तिग मांहि । भाव निचेपा श्री जिनवर को ते सुराज्यो चित्त ་ लगाय ॥ ५ ॥ || ढाल पांचवीं ॥ ( पूज्यनी पधारे नगरों सेविया । एदेशी ) अनन्ता तीर्थंकर आगे होसी वले, ते अवास् रुले च्यारु' गत मांहि हो भविक नग, जे द्रवा तीर्थकर कहिजे तेहने, पिण भावे एकेन्द्रियादिक ताहि हो भविक जण, भाव निचे पो भवियण ओलखो ॥१॥ तीर्थकर घर वासे वमतां मकां नव भोगी पुरुष ·

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