Book Title: Jain Hit Shiksha Part 01
Author(s): Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publisher: Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 223
________________ ( २१५ ) निर्जरा धर्म हो भ० बांधे सात आठ सब निग या तौन निक्षेपा मानिया, कर्म हो भ० ॥ भा० ॥ १६ ॥ ने माता पितारा अंग सुं अपनो, ते भावे पुत्र साक्षात हो भ० मात पिता पण भावे छे तेहना, नौवे ज्यां लग त्यांरो अंग जात हो भ० ॥ भा० ॥ १७ ॥ ते पुत्र मरे और जायगा, उपनो जब यांरो नहीं अँग जात हो, भ० ए माता पिता पिय भावे नहीं तेहना भावे सगपण नहीं तिल मात हो भ० ॥ भा० ॥ १८ ॥ कोई स्त्री परगों घर बासी करे, ते भावे बरते नार हो भ० ते पाछल भव बूरा गे माता हुतो, ऊ सगपण नही रह्यो लिगाव हो स० ॥ भा० ॥ १६ ॥ इम भाई भतीजा काका बाबादिक, बहन बहनोई आदि पिछाण हो भ० जे जे सगपण वर्त्तमान काल में, ते भाव सगपण जाग हो भ० ॥ भ० ॥ २० ॥ भाव सगपण ज े संसार मे, ते आवे गुण परमाणें काम हो भ० द्रव्ये सगा सगला एक एक रे, त्यांरा कुण कुण कहीजे नाम हो अ० ॥ भ० ।। २१ ।। आवे सगपण बीता पढ़ें भावे ज्यूं अर्थ न श्राय हो स० पिण भावे मांहि नहीं, त्यां द्रव्ये तो सूं गरज सरे नही काय सगला ई जीव है द्रव्य मस्कार हो अ० तिहां • हो भ० ॥ भ० ॥ २२ ॥ नेरिया, पिय भावे तो नारको

Loading...

Page Navigation
1 ... 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243