Book Title: Jain Hit Shiksha Part 01
Author(s): Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publisher: Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
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र २०५ ) महाबीर खामौ री जीव मरौच रे, ते घर छोडी ने हुवा विदंडिया र, तिण दरी करणी सावन न श्रद्धा नौच रे ॥ द्र० ॥८॥ जे द्रव्ये तीर्थंकर हुतो तिण दिने रे, श्री ऋषम जिनेश्वर दियो बताय रे । श्री ऋषभ लिनेश्वर साधु ने साधवी रे, क्य न बांदा त्याग पाय रे ॥द्र० ॥६॥ चोवीसत्थो करता बांदे तेहने रे , तिण स्यं तो भेलो करणो आहार रे। श्री ऋषभ जिनेश्वर सरीखी लेखवी रे, श्री करता बन्दना ने नमस्कार रे ॥द्र० ॥१०॥ श्री ऋषभ जिनेश्वर रा साधु ने साधवी रे, त्या नहीं बाद्यो न गिणो .मरौच रे । जे काई द्रव्य तीर्थ कर बादसौ रे, तिण
रौ पिण सावज करणौ नौच रे ॥द्र० ॥ ११ ॥ भरतजी बांद्या कहे मरौच ने रे, ते पिण नहीं है सूत्र माहि रे । भोला में बिगीय पाड्या भरम में रे, त्या निगुण ने बाद हरकत थाय रे ॥द्र० ॥ १२ ॥ द्रव्य तीर्थंकर होता किशनजी रे, श्री नेम जिनेश्वर दिया बताय रे, पिण नेम जिनेश्वर रा साधु न साधवी रे, कृष्ण रा क्यों नहीं बांद्यां पाय रे ॥ द्र० ॥ १३ ।। त्या उलटो कृष्ण ने पगे लगावियो रे, पिण गुण बिन द्रव्य न बाद्यो काय रे, तो चोवीसत्यो करता तिण ने किम बादसौ रे, तुमे हिये विमासी