Book Title: Jain Hit Shiksha Part 01
Author(s): Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publisher: Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
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( २०४ ) न करे अज्ञानी पाप रे। तेहनें नमात्य गा में घालिया रे, त्यां कौधौ निगुग बांदण री थाप रे ॥ द्रव्य निक्षेपा गे निरणो सुणो रे ॥ १॥ नमात्यु णं बोवित्यु किया घका रे, कहे गुण रो मत जाणो काम रे । उणरी श्रद्धा लेखे कुण कुण बादणा रे, ते सुणजी राख चित एकण ठाम रे ।। द्र० ॥२॥ एक लूला में जीव निकलौ रे, अनन्ता तीर्थंकर आगे पाय रे । जे द्रव्य तीर्थकर वादे गुण बिना रे, तो मूला ने क्यों न वादे नाय रे ॥ द्र० ॥ ३॥ पृथ्वि आदि देई छः काय में रे, जे द्रव्य तीर्थ कर अनन्ता पिछाण रे । जे द्रव्य तीर्घ कर वादे गुण विना रे, तो क्यूं नहीं बाद याने जाय रे ॥ द्र० ॥ ४॥ अनन्ता जीव द्रव्य छः काय मे रे, सिद्ध होसी जानादिक पाय ऋद्ध रे, जे द्रव्य तीर्घ कर वादे गुगा विना रे, तो क्यू न वांद द्रव्य सिद्धरै ।। द्र० ॥ ५॥ अनंता द्रव्य साधु छः काय में रे, भावे होमी चारित्र आराध रे, जे द्रवा तीर्थंकर वांदे गुण विना गे, तो वे क्यों न वाद द्रवा साधरे ॥ द्र० ॥ ६ ॥ ए द्रवा तीर्घ कर सिद्ध साधु कह्या रे, तहि जन वांद त्याग पाय रे, इगा लेखे इण री श्रद्धा खोटी पगैरे. पिगा आधा ने समझ पड़े नही काय रे ॥ द्र० ॥ ७ ॥ भरत चक्री गे हुवा डीकगे रे, ते