Book Title: Jain Hit Shiksha Part 01
Author(s): Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publisher: Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
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( २०७ ) जाणी ने कौधौ बिटमणा रे, त्या सू पिण सेव्या काम न भोग रे तो चोवीसत्या करता तिण ने किस बांदसौ रे, आ ग रा रौ श्रद्धा जाणो अजोग रे ॥द्र० ॥२१॥ कृष्ण जी ने श्रेणिक रौ राणियां रे, समदृष्टि में चतुर सुजाण रे । त्या तो सामायक पासा में बदना करी रे, ते भाव तीर्थकर देव जाण रे ॥ द्र० ॥ २२ ॥ जे द्रव्य तीर्थंकर बांदे गुण बिना रे, त्यांने गुण बिना बांदणा द्रव्य साध रे। जोज कहे द्रवा साधु ने बांदगा दे, उगा ने उण री श्रद्धा रौ न पड़ी लाध रे॥ द्र० ॥ २३ ॥ काई आगमिया काले शुद्ध साध हुसी रे, कोई सागल हुसौ चारित्र बिराध रे। ते द्रव्ये छ गुगा बिण ठालो ठीकरा रे, त्यां सगला ने कहौजै द्रव्ये साध है ॥ द्र० ॥ २४ ॥ जो द्रव्ये साधु ने बांदे गुण बिना रे, तो यां सगलां ने बंदणा करणी ताम रे। उगारी श्रद्धा रे लेख गुया कुण बांदणा रे, हिवै द्रवा साधु रा कहं छं नाम रे ॥ द्र० ॥ २५ ॥ तो गोसाला कुपात्र ने बांदणो , ते मिण आगमिया काले साधु थाय है। जे द्रव्ये साधु ने बांदे गुण बिना रे, तो गासाला ने क्यों न बांदे ताय रे ॥ द्र० ॥ २६ ॥ बले इग्यारा श्रेणिक रा डोकरा रे, कोणक कालिदिक कुमार रे । जे द्रवा साधु ने बांदे गुण बिना रे,