Book Title: Jain Hit Shiksha Part 01
Author(s): Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publisher: Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner

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Page 201
________________ ( १६३ ) धरे। इसी धर्मो नरकां पड़े ॥ ७॥ लोक कहै आ लक्ष्मी बाय । ऊगा सूरज छाणा ने जाय ॥ किणहिक नाम सरूपा दियो। एक काली में कुजस लियो ॥८॥ सुन्दर नाम दियो छै अनूप । खाटी बाले बली कुरूप ॥ कुत्ता चाटे छै हांडिया। सेडे करने घर भंडिया ॥६॥ ज्यूं नाम दियी अरिहंत भगवान । पिणा माहे न दौसे अकल गिनान ॥ तरण तारण गै समझ न काय । तिगा में सूरख बांदे जाय ॥ १० ॥ दूण अनुसार दोधा नाम अनेक । त्यां सं गरज सर नहीं एक ॥ ते सुगने समझे चतुर सुजाण । पिगा सूरख न माने मांडे ताणां ताण ॥ ११ ॥ ॥ दोहा । नाम निक्षेपी ओलखाविया, हिवै थापना अधिकार । गुण बिन देखो थामना, भूला भरम संसार ॥ १ ॥ बांदे पूजे तीर्थंकर नौ थापना, त्यांरे आकारे पत्थर या राय । साना पीतल धात अनेक सं, त्यांर आकारे बिम्ब सराय ॥ २॥ बले कपड़ादिक कागद ऊपर, भगवंत रो मांडे आकार । तिगा ने शीश नमाय बन्दना करे. जागे हुवा लास अपार ॥ ३॥ कहे जिन प्रतिमा जिन सारखी, फेर न जाणो कोय । दायां ने बांद्यां थकां लाभ सरीखा होय ॥ ४॥ कहे २५

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