Book Title: Jain Hit Shiksha Part 01
Author(s): Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publisher: Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
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उल्यै घणचए थ लाउ सेहुगाउ विरमगं चायो अणवत स्थूलथकी मैथुनकी निवर्तवो पांचा वानांवारी बालखीजे द्रव्ययको तो देवता देवांगना सम्वन्धिया सैथुन सेवू नहौं सेवा नहौं तिबंध नियंचगौ सस्वन्धी अधुन मेवं नहौं सेवा नहीं मनुष्य सबधो संथुन सेवं नहौं सेवावं नहौ, मनुप्यणो सम्बन्धी मैथुन सेवाको मर्याद कौधौ छै तिण उपरांत सेवू नहौ सेवा नही सनसा वारसा कायमा, द्रव्ययको एहिज द्रव्य क्षेत्रको सर्व क्षेत्रांम बालश्रको जावजीव लगे, आवथको राग द्वेष रहित उपयोग सहित, गुगाथको संबर निर्जरा एहबा उहां चौथा व्रतमे ज्यो कोई अतिचार दोष लागो होय ते बालोड। घोड़ा कालको गखी परिग्रही सुं गमन कौधा होह १ अपरिग्रही सं गमन कीधी होय २ अनेक क्रिीड़ा कौधौ होय ३ पगयानाता विवाह जोड्या होय ४ काम भाग तिन अभिलाषासे सेव्या होय ५
तस्स मिच्छामि टुकडं।
॥ इति ॥