Book Title: Jain Hit Shiksha Part 01
Author(s): Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publisher: Kumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner

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Page 189
________________ धम्मो पन्नत्तो प्ररूप्यो धर्म ते लोक में पवज्जामि अरिहन्ता ग्रहणकरूं सरणं पवज्जामि ( १८१ ) लोगुत्तमा उत्तम अरिहन्तों का म सरां शरणां सिद्धा शरणां ग्रहण करताहूं सिद्धाका साहु सरणं पवज्जामि केवल केवली सरणं सरणं शरणा लेता हूं पन्नत्तो धम्मो प्ररूपित धर्मका शरण ग्रहण करता हूं च्चारों सरणा एसगा अवर न सगो कोय ने भव प्राणी चत्तारि च्यार पवज्जामि आदरे अक्षय अमर पद होय । ॥ इति ॥ साधुका शरण है पवज्जामि । अथ देवसी प्रायश्चित | दिवसनों देवसौ प्रायश्चित विसादनार्थं करेमि का सग्ग प्रायश्चित शुद्ध करवाने अर्थ करू छू ॥ इति प्रतिक्रमणं ॥ काउस्सग अथ पडिक्रमणां करने की विधि | प्रथम चौबीस्थ करणो नियामें १ इच्छामि पड़िक्कमेड को पाटो । २ तस्सुत्तरोकौ पाटी | । ध्यान में इच्छामि पड़िक्कमेड को पाटो मनमें चितारकर एक नवकार गुणनों । ३ लोगस्स उज्जोगरे को पाटो । ४ नमोत्थु को माटो ।

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