Book Title: Jain Gyan Gun Sangraha
Author(s): Saubhagyavijay
Publisher: Kavishastra Sangraha Samiti

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Page 5
________________ दो अप्रसिद्ध लेख इसमें हमारे भी शामिल किये गये हैं जो "विविधविचार" शीर्षक प्रकरणमें छपे हैं / . दूसरा खण्ड पद्यमय है, इसमें कुछ रचनायें मुनिश्रीसौभाग्यविजयजीकी खुद की हैं, और बाकी सब नवे पुराने अनेक कवियों की / इन की पसंदगी इस प्रदेश के श्रावक-श्राविकागण की रुचि के अनुसार की गई है। ____ इस प्रकार इस संदर्भ के दो खण्डोंमें क्रमशः जैनज्ञान और जैनगुणोंका संग्रह होने के कारण ही इसका सार्थक ना. म "जैनज्ञान-गुणसंग्रह" रक्खा गया है। "जैनज्ञानगुणसंग्रह" की भाषा सरल और सुबोध बना. नेका लक्ष्य रखा गया है, इसी कारण इसमें कहीं कहीं देशपसिद्ध शब्दों का प्रयोग किया गया है और कुछ हिन्दी शब्दों के उच्चारण देश्यभाषा के अनुसार लिखे गये हैं। दूसरे खण्ड में प्राचीन लेखकों के स्तुति, स्तवन, सज्झाय, पद आदि सब मुद्रित पुस्तकों में से लिये गये हैं परन्तु अ. वकाश न मिलने के कारण उनका हस्तलिखित-मूलपुस्तकों से मिलान नहीं हो सका, इस कारण क्वचित् अशुद्धि रह गई हो तो पाठकगण सुधार कर पढ़ें। ग्रन्थ के अन्तमें "गोलनगरीय पाश्वनाथप्रतिष्ठाप्रबन्ध" और "पोषधविधि" नामक दो परिशिष्ट जोडे गये हैं, जिनमें

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