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भट्टारक रत्नचन्द्र संवत् १६८३ में उक्त चरित ग्रन्थको रचना विबुध तेजपालकी सहायतासे की है । ग्रन्थकर्त्ताने यह ग्रन्थ खंडेल वाल वंशोत्पन्न हेमराज पाटनी नामांकित किया है जो सम्मेद शिखरकी याथार्थ भ० रतनचंद्रके साथ गए थे । हेमराजकी धर्मपत्नी का नाम 'हमीरदे' था । और यह पाटनीजी वाग्वर ( बागड़ ) देशमें स्थित सागपत्तन (सागवाडा ) के निवासी थे ।
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४५वीं प्रशस्ति 'होली रेणुकाचरित्र' की है जिसके कर्त्ता पंडित जिनदास हैं | पण्डित जिनदास वैद्य विद्यामें निष्णात विद्वान् थे । इनके पूर्वज 'हरिपति' नामके वणिक थे । जिन्हें पद्मावती देवीका वर प्राप्त था, और जो पेरोजशाह नामक राजासे सम्मानित थे । उन्हींके वंशमें 'पद्म' नामक श्रेष्ठी हुए, जिन्होंने अनेक दान दिये और ग्यासशाह नामक राजासे बहुमान्यता प्राप्त की । इन्होंने साकुम्भरी नगरीमें विशाल जिनमन्दिर बनवाया था, वे इतने प्रभावशाली थे कि उनकी आज्ञाका किसी राजाने उल्लंघन नहीं किया । वे मिथ्यात्व घातक थे तथा जिनगुणोंके नित्य पूजक थे । इनके पुत्रका नाम 'बिंझ' था, जो वैद्यराट् थे fort शाह नसीरसे उत्कर्ष प्राप्त किया था । इनके दूसरे पुत्रका नाम 'सुहृजन' था, जो विवेकी और वादिरूपी गजोंको लिये सिंहके समान था । सबका उपकारक और freeteer करने वाला था । यह भट्टारक जिनचन्द्र के पट्ट पर प्रतिष्ठित हुआ था और उसका नाम 'प्रभाचन्द्र' रक्खा गया था, इम्पने राजाओं जैमी विभूतिका परित्याग किया था । उक्त बिकका पुत्र धर्मदास हुआ, जिसे महमूद शाहने बहु मान्यता प्रदान की थी । यह भी वैद्य शिरोमणी और विख्यात कीर्त्ति थे । इन्हें भी पद्मावती का वर प्राप्त था । इसकी धर्मपत्नीका नाम 'धर्म श्री' था, जो अद्वितीय दानी, सदृष्टि, रूपसे मन्मथ विजयी और प्रफुल्ल वदना थी । इसका 'रेखा' नामका एक पुत्र था जो वैद्यकलामें दक्ष, वैद्योंका स्वामी और लोकमें प्रसिद्ध था । यह वैद्य कला अथवा विद्या आपकी कुल परम्परामें चली आ रही थी और उससे आपके वंशकी बड़ी प्रतिष्ठा थी । रेखा अपनी वैद्य विद्याके कारण रास्तम्भ ( रणथम्भौर )
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