________________
(५२) प्राषाढ़ शुक्ला पंचमी बुधवार के दिन की है । सेठके कूचा मन्दिर दिल्ली शास्त्र भण्डारकी प्रतिमें उसे मुनि रतनचन्द्रकी वृत्ति बतलाया गया है अतएव दोनों वृत्तियोंको मिलाकर जांचनेकी अावश्यकता है कि दोनों वृत्तियों जुदी-जुदी हैं या कि एक ही वृत्तिको अपनी-अपनी बनानेका प्रयन किया गया है।
ब्रह्मरायमल मुनि अन्तकीर्तिक जो भ. रत्नकीतिक पट्टधर थे। यह जयपुर और उसके आस-पासके प्रदेश के रहने वाले थे। यह हिन्दी भाषा के विद्वान थे। पर उसमें गुजराती भाषाकी पुट प्रांकित है दोनों भाषाओं के शब्द मिले हुए हैं। इनको हिन्दी भाषाको ७-८ रचनाएँ और भी उपलब्ध हैं । नेमिश्वरसार, हनुवन्तकथा, प्रद्युम्नचरित, सुदर्शनसार, 'निर्दोष सप्तमीव्रतकथा, श्रीपालरास, और भविष्यदत्तकथा । इनमें नेमिश्वरराम सं० १६२५ में, हनुवन्तकथा सं० १६१६ में, प्रद्युम्नचरित सम्बत् १६२८ में, सुदर्शनसार सम्वत् १६२६ में, श्रीपालरास सं० १६३० में, और भविष्यदत्त कथा सम्वत् १६३३ में बनाकर समाप्त की है। निर्दोष सप्तमी व्रतकथामें रचनाकाल दिया हुअा नहीं है । सम्भव है किसी प्रतिमें वह हो और लेखकोंसे छूट गया हो । इन ग्रन्थोंके अतिरिक्त इनकी और भी रचनाओंका होना संभव है जिनका अन्वेषण करना आवश्यक है। ____७६वीं प्रशस्ति 'सिद्धान्तसार' ग्रन्थकी है जिसके कर्ता प्राचार्य नरेन्द्रसेन हैं। जो लाडबागडसंघमें स्थित सेनवंशके विद्वान थे, और गुणसेनके शिष्य थे। प्रशस्तिमें गुरुपरम्पराका निम्न प्रकार उल्लेख किया गया है-पासन, धर्मसेन शान्तिषेण, गोपसेन, भावसेन, जयसेन, ब्रह्मसेन, वीरसेन, गुणसेन, उपयसेन. जयसेन और नरेन्द्रसेन । इनमेंसे गुणसेन उदयसेन और जयसेन ये तीनों विद्वान सम-सामयिक जान पड़ते हैं। नरेन्द्रसेनकी इस एक ही कृतिका पता चला है । ग्रन्थ-प्रशसि. में रचनाकाल दिया हुमा नहीं है, जिससे यह निश्चित नहीं कहा जा सकता कि यह ग्रन्थ कब रचा गया। पर दूसरे साधनोंसे यह अवश्य कहा जा सकता