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(७४) उक्र मन्दिरकी दक्षिण दिशामें एक लेख और भी है जो उक्त सं० १२२३ का उत्कीर्ण किया हुआ है, इस लेखमें रामचन्द्र मुनिको मुनि लोकनन्दीके शिष्य मुनि देवनन्दिके वंशका विद्वान तपस्वी सूचित किया है जिसने विद्याहर्म्य (पाठशाला) को बनवाया था साथ ही उन्हें अनेक राजाओंसे पूजित भी बतलाया है। अतः बहत सम्भव है कि केशवनन्दिके शिष्य उक्त रामचन्द्रमुमुक्षु भी इसी नंद्यन्तनाम वाली परम्पराके विद्वान हों, तो इनका समय भी वि० की १२वीं १३वीं शताब्दी हो सकता है । पर अभी इस सम्बन्धमें प्रामाणिक अनुसन्धानकी श्रावश्यकता है, उसके होने पर फिर निश्चय पूर्वक कुछ कहा जा सकता है ।
१० वीं प्रशस्ति 'प्राकृत पंचसंग्रह-टीकाकी' है, पंचसंग्रह नामका एक प्राचीन प्राकृत ग्रन्थ है, जो मूलतः ५ प्रकरणोंको लिये हुए है । और जिस पर मूलके साथ भाप्य तथा वृणि और संस्कृतटीका उपलब्ध है । इस ग्रन्थका सबसे पहले पता इन पक्रियोंके लेखकने लगाया था जिम्मका परिचय अनेकांत वर्ष ३ किरण ३ में दिया गया है। यह ग्रन्थ बहुत पुराना है, आचार्य अमितगतिने सं० १०७३ में प्राकृत पंचसंग्रहका
मदिरकी दक्षिण तरफका शिलालेख१ नमो वीतरागाय ।।
श्रासीधः कलिकालकल्मवकरिध्वंसककंठीरवी. ऽनेकच्मापतिमौलिचुम्बितपदो यो लोकनन्दी मुनिः ॥ शिष्यस्तस्य समूल सङ्घतिलकश्रीदेवनन्दी मुनिः।। धर्मज्ञानतपोनिधिर्यति-गुण-ग्रामः सुवाच निधिः ॥१॥ वंशे तस्मिन् विपुलतपमां सम्मत. पत्वनिष्ठो । वृत्तिपापां विमलमनसा संन्यजद्योविवेकोः ॥ रम्यं हम्यं सुरपति जितः कारितं येन विद्या (१) शेषां कीर्तिभांति भुवने रामचन्द्रः स एषः॥
संवत् १२२३ वर्षे । See cunninghanı archer suruey India XX1 P. 68