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तरंगणी' नामका एक अध्यात्म ग्रन्थ लिखा और उसकी स्वोपज्ञ वृत्ति भी बनाई थी। __इनके सिवाय भ० ज्ञानभूषणकी निम्न रचनाएँ और भी उपलब्ध हैंसिद्धान्तसार भाष्य,परमार्थोपदेश,नििनर्माणकाव्यपंजिका,सरस्वतिस्तवन,आत्मसम्बोधन, और कर्मकाण्ड अथवा (कम्म पयडि) टीका कर्ता भ० ज्ञानभूषण और सुमनिकीर्ति बतलाये गये है यह टीका ज्ञानभूषणके नामांकित भी है । और उसे 'कर्मकाण्ड टीका' के नामसे उल्लेखिन किया गया है । परन्तु भ० ज्ञानभूषण कर्मकाण्ड या कर्मप्रकृतिके टीकाकार नहीं हैं, उनके शिष्य भ० सुमतिकोति हैं । इस टीकाकी ८१ पत्रा. मक एक प्रति पहले तेरापंथी बडे मन्दिरके शास्त्र भण्डारमें देखनेको मिली थी, जो संवत् १८५४ की लिखी हुई है । वह प्रति इस समय सामने नही है। उसमें टीकाका समय सं० १६२० सम्भवतः दिया हुश्रा है। अतः वह भ० ज्ञानभूषणकी कृति नहीं उनके शिष्य सुमतिकीर्ति की है, इमी लिए उनके नामांकित की गई मालूम होती है । इन्होंने अनेक ग्रन्थ भी लिखवाये हैं। मं० १५६० में गोम्मटमारका 'प्राकृत टिप्पण' भी इन्हींका लिखवाया हुया है जो अब मौजमावाद (जयपुर) के शास्त्र भंडारमें है।
ज्ञानभूषण अपने समयके सुयोग्य भट्टारक थे। इनका बागड देशमें अच्छा प्रभाव रहा है। इन्होंने 'तत्त्वज्ञान तरङ्गिणी' नामक ग्रन्थकी रचना विक्रम मं० १५६० में की है । अतः यह विक्रमकी १६वीं शताब्दीके विद्वान हैं। इनको प्रेरणासं कर्नाटक प्रान्त वाग्मी नागचन्द्रसूरिने पंचस्तोत्रकी टीका भी लिखी है। इनकी मृत्यु कब और कहाँ हुई इसका कोई उल्लेख अभी तक मेरे देखनेमें नहीं आया। __७४वीं प्रशस्ति 'भक्तामरस्तोत्र वृत्ति' की है जिसके कर्ता ब्रह्मरायमल्ल हैं । यह हूबडवंशके भूषण थे । इनके पिताका नाम 'मह्य' और माताका नाम 'चम्पा' देवी था । ये जिनचरणकमलोंके उपासक थे । इन्होंने महासागरके तट भागमें समाश्रित 'ग्रीवापुर' के चन्द्रप्रभ जिनालयमें वर्णी कर्ममीके वचनोंसे भक्कामरस्तोत्रकी वृत्तिकी रचना वि० सं० १६६७