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जीवंधरचरित्र, चन्दनाचरित, प्राकृत लक्षण-सटीक और अध्यात्मतरंगिणी नामके आठ ग्रन्थोंकी हैं, जिनके कर्त्ता भट्टारक शुभचंद्र हैं । जिनका परिचय ३२ नं० की कार्तिकेयानुप्रक्षा-टीका प्रशस्तिमें दिया गया है ।
४१वीं प्रशस्ति कर्णामृतपुराण की है जिसके कर्ता केशवसेनसूरि हैं। जिनका परिचय १६वीं षोडशकारण व्रतोद्यापन' की प्रशस्तिमें दिया गया है ।
४२वीं, ४३वीं और ७८वीं प्रशस्तियाँ क्रमशः सप्तव्यसनकथासमुच्चय, प्रद्युम्नचरित्र और यशोधरचरित्र की हैं। इन प्रन्थोंके कर्ता भट्टारक सोमकीर्ति काष्ठासंघस्थित नन्दीतट गच्छके रामसेनान्वयी भट्टाto भीमसेनके शिष्य और लक्ष्मीसेनके प्रशिष्य थे । इन्होंने उक्त ग्रन्थोंकी रचना क्रमशः सम्वत् १५२६, १५३१, और सं० १५३६ में की है। इनमेंसे सप्तव्यसन कथा समुच्चयको भट्टारक रामसेनके प्रसादसे दोहजार सदस श्लोकोंमें बनाकर समाप्त किया है। और प्रद्युम्नचरित्र भट्टारक लक्ष्मीसेनके पट्टधर भ० भीमसेनके चरणप्रसादसे रचा गया है । तथा यशोधरचरित्रकी रचना कविने गोंढिल्ल मेदपाट (मेवाड़) के भगवान शीतलनाथ के सुरम्य भवनमें मं० १५३६ पौष कृष्णा पंचमीके दिन एक हजार अठारह श्लोकोंमें पूर्ण की है। शेष प्रन्थोंको प्रशस्तियोंमें स्थानादिका कोई निर्देश नहीं है । इन तीन प्रन्थोंके सिवाय इनकी और क्या कृतियाँ है यह कुछ ज्ञात नहीं हो सका । पर इनका समय विक्रमको १६वीं शताब्दीका पूर्वार्ध है ।
४३वीं प्रशस्ति 'प्रद्युम्नचरित्र' की है जिसके कर्ता महारक सोमकीर्ति हैं, जिनका परिचय ४२ नं० की प्रशस्त्रिमें दिया जा चुका है 1
४४वी प्रशस्ति 'सुभौमचक्रचरित्र' की है, जिसके कर्ता भट्टारक रतनचन्द्र हैं । भ० रतनचन्द्र हुंबद जातिके महीपाल वैश्य और चम्पा - देवीकी कुक्षीसे उत्पन्न हुए थे। और वे मूलसंघ सरस्वती गच्छके भट्टारक पद्मनन्दीके श्राश्रयमें हुए हैं तथा भट्टारक सकलचन्द्रके शिष्य थे ।