Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Author(s): Haribhai Songadh, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/१२
प्रथम अंक
बलिदान
पहला दृश्य:
___(जंगल में मुनिराज बैठे हैं, यह दिखाने के लिए चित्र या फोटो रखें। वहाँ बालक खेलने के लिए आते हैं। अकलंक निकलंक के बचपन का नाम अकु और निकु है।)
अकलंक : निकु! आज हम कौन-सा खेल खेलेंगे?
निकलंक : भाई! आज से तो दशलक्षण महापर्व प्रारम्भ हुआ है। इसलिए हम इन धर्म के दिनों में खेलना-कूदना बन्द करके धर्म की आराधना करें तो कितना अच्छा रहे?
ज्योति : हाँ भाई निकु! तुम्हारी बात बहुत अच्छी है। आशीष : तो चलो, हम सब इसी समय धर्म-चर्चा प्रारंभ करते हैं।
हंसमुख : हाँ भाई आशीष! चलो तत्त्वचर्चा में सभी को आनंद आयेगा।
पारस : अहो! देवलोक के देव भी हजारों-लाखों वर्षों तक धर्मचर्चा करते हैं। आत्मस्वरूप की चर्चा सुनने का मुझे भी बहुत रस है।
चन्द्र : हाँ तुम बचपन से ही बहुत रुचिवान हो।
भरत : चलो! हम अकु-निकु से प्रश्न पूछते हैं और वे हमें समझायेंगे।
अकलंक : बहुत अच्छा, खुशी से पूछो। तत्त्वचर्चा से हमें भी आनन्द होगा।