Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Author(s): Haribhai Songadh, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/४० अकलंक : बोलो भाई! खुशी से बोलो! मैं भी तुम्हारे साथ बोलूँगा। (दोनों बहुत ही वैराग्य भाव से स्तुति बोलते हैं ।) मेरा धर्मसेवा का भाव, प्रभुजी पूरा करना आज । मेरा भव का बन्धन तोड़, आशा पूरी करना नाथ । टेक ॥। शासनसेवा की प्रीति जागी, भव-उद्धारक वीणा बाजी। फरके जैनधर्म का ध्वज, अवसर ऐसा देना नाथ ॥ | १ || सब मिथ्यात्वी धर्म तजूँ मैं, अनेकान्त के पाठ पढूँ मैं। गाजे जैनधर्म का नाद, आशा पूरी करना नाथ ॥ २ ॥ अकलंक : भाई! धर्मसेवा की तुम्हारी भावना सुनकर मुझे बहुत आनन्द हुआ। अब मुझे भी एक भावना हो रही है, जो कि दिनरात भाने जैसी है, सुनो!

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84