Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Author(s): Haribhai Songadh, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 65
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/६३ चौथा दृश्य : (पुन: राज्यसभा शुरु होती है सभा में एक ओर पर्दा है, उसके पीछे आचार्य संघश्री बैठे हैं, उनके बगल में एक मटका कपड़े से मुंह बांधकर रखा गया है। अकलंक आदि सभा में प्रवेश करते हैं ।) राजा : क्यों, आज संघश्री महाराज अभी तक नहीं आए ? क्या अभी उनके सिर के चक्कर ठीक नहीं हुए? अजिनकुमार : महाराज, एक खास वजह से वे सामने आकर नहीं बोलेंगे. परन्तु पर्दे में रहकर जवाब देंगे। राजा : ऐसा क्यों ? जिनकुमार : महाराज ! वे हमारे अकलंककुमार का प्रताप सीधा नहीं झेल सकते हैं, इसलिए पर्दा रखा होगा । अकलंक : ठीक है महाराज ! वे पर्दे में रहकर ही जवाब दें। देखिए, अब शीघ्र ही मैं इस पर्दे का रहस्य सामने लाता हूँ। बोलिए! संघश्री ! ये आत्मा नित्य है या अनित्य ? (पर्दे के पीछे से आवाज आती है— आत्मा नित्य नहीं है, सर्वथा क्षणिक है, दूसरे क्षण में वह नष्ट हो जाती है और अपने संस्कार छोड़ती जाती है, इसलिए वह नित्य जैसी प्रतिभासित होती है, यह भ्रम है। वास्तव में जगत में सब क्षणिक है ।) अकलंक : संघश्री ! आपने जो कहा है, उसे ये उपस्थित नागरिक साफ-साफ सुन नहीं सके हैं, अतः इसी बात को पुनः कहिये । ( अन्दर से किसी के बोलने की आवाज नहीं आती । ) अकलंक : बोलिए संघश्री ! क्यों नहीं बोलते ? बोलिए! जवाब दीजिए। (थोड़ी देर फिर शान्ति रहती है ।)

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