Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Author(s): Haribhai Songadh, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/६१ संघश्री : नहीं, मैं नहीं हूँ। जिसने पहले आपके साथ चर्चा की वह दूसरा था, जो अभी बोलता है वह दूसरा है और जो अब आगे बोलेगा वह तीसरा।
_अकलंक : तो क्या मैं जिससे प्रश्न पूछता हूँ, वही मुझे जवाब नहीं देता है?
संघश्री : नहीं। आपका प्रश्न जो सुनता है, वह जीव अलग है और जो आपको जवाब देता है, वह जीव अलग है।
अकलंक : तो अब तक मेरे साथ चर्चा करनेवाले आप ही हैं या दूसरे?
संघश्री : नहीं, वह मैं नहीं हूँ। वह आत्मा दूसरा था और मैं दूसरा हूँ।
अकलंक : वर्तमान क्षण से पहले आपका अस्तित्व था या नहीं?
संघश्री : नहीं।
अकलंक : अरे! अरे! एकान्त क्षणिकवादी अज्ञान में अन्ध होकर अपने अस्तित्व का ही आप इंकार कर रहे हो। अपना अस्तित्व प्रत्यक्ष होने पर भी उसका स्वयं ही निषेध कर रहे हो। वाह रे! अज्ञान!! ठीक, अब मैं आपसे जो प्रश्न पूछूगा, उनका जवाब आप स्वयं ही देंगे या कोई दूसरा?
संघश्री : मेरे पीछे दूसरा आत्मा उत्पन्न होगा, वह जवाब देगा। अकलंक : तब तो तुम्हें हार स्वीकार करनी पड़ेगी। संघश्री : किसलिए?
अकलंक : क्योंकि मेरे प्रश्न का उत्तर देने की जिम्मेदारी आपकी है, परन्तु आपके सिद्धांत के अनुसार आप स्वयं तो मेरे प्रश्न का उत्तर दे नहीं सकते। इसलिए आपका एकान्त क्षणिकवाद का पक्ष