Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Author(s): Haribhai Songadh, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/४५ सिपाही : पकड़ो, दोनों को पकड़ लो, नहीं पकड़ में आयें तो प्रहार करो।
निकलंक : जाओ भाई! जल्दी करो!
(अकलंक भागने लगता है। सरोवर में छिप जाता है। निकलंक के पीछे सैनिक धमाधम करते दौड़ रहे हैं। निकलंक भागता-भागता घूमकर रंगभूमि के ऊपर आता है। वहाँ पर सामने से एक धोबी आ रहा है।)
धोबी : अरे बाबा! क्यों भागते हो?
(निकलंक हाँफते हुए भागे जा रहे हैं, धोबी को कुछ भी उत्तर नहीं देते, धोबी उसके भागने का कारण जानने के लिए उसके पीछे दोड़ते हुए पुन: आवाज लगाकर उसे रोकना चाहता है, परन्तु निकलंक ने मानो कुछ सुना ही न हो...., वह तो भागता ही जा रहा है, उसके पीछे धोबी भी भागता जा रहा है।)
उसके पीछे सैनिक, ‘मारो-मारो' करते आ रहे हैं।
("धड़ाक-धड़ाक" सैनिक पास में आकर दोनों पर प्रहार कर देते हैं।)
निकलंक : हा......! अरहंत.......अरहंत.......अ............. (प्राण त्याग बलिदान)
सैनिक : चलो! अपना काम पूरा हुआ। ये दोनों जीवित पकड़ में नही आ रहे थे, इसलिए इनको यहीं ढेर कर दिया। चलो! अब जल्दी यह समाचार गुरु को सुनाते हैं।
(सैनिक जाते हैं। नीरव शान्ति छा जाती है। निकलंक और उस धोबी का मृत शरीर वहाँ पड़ा हुआ है। थोड़ी देर में अकलंक धीरेधीरे शिथिल पैरों से वहाँ आते हैं, और अचानक निकलंक के शरीर के ऊपर नजर पड़ते ही “हा निकलंक! निकलंक!! भाई! भाई!!"