Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Author(s): Haribhai Songadh, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 48
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/४६ ऐसा उसे पुकारते हैं। थोड़ी देर तक गंभीरता से उसकी ओर देखते रहते हैं और उसके बाद एकदम भरे हुए गले से बहुत ही वैराग्य एवं करुण भावे से बोलते हैं।) अकलंक : अहा! जैनधर्म के लिए मेरे भाई ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। अपने प्राण निकालकर इसने जैनशासन में नये प्राण फूंक दिये। भाई! जैन-शासन के लिए किया गया तेरा बलिदान निष्फल नहीं जायेगा। अहो! तुमने प्राणों से भी अधिक प्यारे जैन-शासन को समझा। तुम्हारा ऐसा जैनधर्म का प्रेम परभव में भी तुम्हारा कल्याण करेगा और तुमको इस संसार-सागर से पार

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