Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Author(s): Haribhai Songadh, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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द्वितीय अंक
प्रभावना
प्रार्थना
वन्दन हमारा प्रभुजी तुमको, वन्दन हमारा गुरुजी तुमको।। वन्दन हमारा सिद्ध प्रभु को, वन्दन हमारा अरहंत देव को।। वन्दन हमारा सब मुनियों को, वन्दन हमारा धर्मशास्त्र को।। वन्दन हमारा ज्ञानीजनों को, वन्दन हमारा चैतन्यदेव को।। वन्दन हमारा आत्मस्वभाव को, वन्दन हमारा आत्म भगवान को।।
उपोद्घात : इस नाटक के पहले अंक में अकलंक-निकलंक की बाल्यावस्था ब्रह्मचर्य-प्रतिज्ञा, जैनशासन की सेवा की तमन्ना, एकान्त मत के विद्यापीठ में अध्ययन, ‘स्यात्' शब्द सुधारना, पकड़े जाना, उसके बाद जेल से भाग जाना और भागते-भागते निकलंक का बलिदान हो जाना, इन दृश्यों का वर्णन हुआ अब दूसरे अंक का नाम है 'प्रभावना'। निकलंक के बलिदान के समक्ष अकलंक ने एकांती को हराकर भारतभर में जैनधर्म का विजयध्वज फहराने की जो प्रतिज्ञा की थी, वह किसप्रकार पूरी होती है और जैनधर्म की कैसी महान प्रभावना होती है, उसका वर्णन इस दूसरे अंक में आयेगा।
(प्रारम्भ में उज्जैन नगरी के राजदरबार का दृश्य है। उज्जैन के महाराजा के दो रानियाँ हैं। उनमें से एक जैनधर्म की अनुयायी है
और दूसरी अन्य एकान्तधर्म की। नाटक में इन रानियों का अभिनय दिखाना कठिन होने से हमने रानियों के प्रतिनिधि के रूप में उनके पुत्र जिनकुमार और अजिनकुमार को रख लिया है।)