Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Author(s): Haribhai Songadh, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 45
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/४३ (पर्दे के पीछे से ‘धम-धम' की आवाज आती है।) अकलंक : भाई! वो दूर देखो सैनिक हमें पकड़ने के लिए आ रहे हैं। वे खूब उत्तेजित होंगे और क्रोधित होंगे। इसलिए हमें छोडेंगे नहीं। इस समय बचना मुश्किल है। निकलंक : भैया! ऐसा करो आप जल्दी भाग जाओ और मैं यहाँ खड़ा-खड़ा उन्हें रोके रसूंगा। अकलंक : अरे भाई! क्या ऐसे संकट में तुझे छोड़कर मैं अकेला भाग जाऊँ। निकलंक : भैया! मेरी अपेक्षा आप अधिक योग्य हो। जैन-शासन की सेवा मेरी अपेक्षा अधिक कर सकोगे। आप अपने (योग्य) जीवन के लिए नहीं, परन्तु जैन-शासन की सेवा के लिए जल्दी यहाँ से चले जाओ और मेरी चिंता छोड़ो इस समय एक-एक समय कीमती है। ('धम धम' और 'पकड़ो-पकड़ो' की आवाजें आ रही हैं।) अकलंक : परन्तु भाई! तू मेरा छोटा भाई है। तुझे मृत्यु के मुँह में छोड़कर अकेले मेरे पैर आगे कैसे बढ़ेंगे? निकलंक : भैया! मैं आपके चरणों में गिरकर फिर से प्रार्थना करता हूँ कि इस समय आप मेरे जीवन की नहीं, परन्तु जैन-शासन की रक्षा का विचार करो। जैन-शासन की रक्षा के लिए कदाचित् मेरे जीवन का बलिदान होगा तो मैं अपने जीवन को सफल मानूँगा। भाई! मेरा और तुम्हारा दोनों का जीवन जैन-शासन के लिए ही अर्पित किया हुआ है, इसलिए एक पल की भी देरी किये बिना जिनेन्द्र भगवान का नाम लेकर शीघ्रता से भाग जाओ। देखो! दूर पहला सरोवर दिखाई देता है। वहाँ जाकर विशाल कमल के पत्ते के नीचे छिप जाओ और जीवन में जैन शासन की विजय की ध्वजा फहराना। जाओ भाई! जल्दी जाओ !!

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