Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Author(s): Haribhai Songadh, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 20
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/१८ पिताजी : चलो, सभी मुनिराज के दर्शन-पूजन करने चलें। (सब जाते हैं। पर्दा गिरता है। पुन: पर्दा ऊँचा होने पर मुनिराज दिखाई देते हैं। सब लोग अर्घ्य की थाली लेकर आते हैं और नमस्कार करके निम्नलिखित स्तुति बोलते हैं।) चहुँगति दुख-सागर विषै, तारन-तरन जिहाज। रत्नत्रय निधि नग्न तन, धन्य महा मुनिराज।। जल, गंध, अक्षत, फूल, नेवज, दीप, धूप, फलावली। 'धानत' सुगुरु पद देहु स्वामी, हमहिं तार उतावली।। भव-योग-तन वैराग धार, निहार शिव तप तपत हैं। तिहुँ जगतनाथ अराध साधु, सुपूज नित गुण जपत हैं।। नगरसेठ : अहो! हमारे धन्य भाग्य हैं कि इस महान दशलक्षण पर्व के अवसर पर मुनिराज के दर्शन हुए। हे प्रभो! वीतरागी जैनधर्म का और रत्नत्रय की उत्कृष्ट आराधना का हमें कृपा करके उपदेश दीजिए। (श्री मुनिराज उपदेश देते हैं, उसे सूत्रधार पर्दे के पीछे से बोलता है।)

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