Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Author(s): Haribhai Songadh, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/२०
तीसरा दृश्य:
( उपर्युक्त प्रसंग को बारह वर्ष बीत गये हैं। अकलंक-निकलंक बड़े हो गये हैं। उनके विवाह की तैयारी हेतु पिताजी वस्त्राभूषण की व्यवस्था कर रहे हैं कि अकलंक निकलंक प्रवेश करते हैं।)
निकलंक : पिताजी! यह सब क्या हो रहा है?
पिताजी : हे पुत्रो ! अब तुम बड़े हो गये हो, इसलिए तुम्हारे विवाह की तैयारी चल रही है।
दोनों पुत्र : नहीं- नहीं पिताजी! हमने तो बारह वर्ष पूर्व चित्रगुप्त मुनिराज के पास में आपके साथ ही ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया था ।
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पिताजी : बेटा! वह तो तुम्हारा बचपन का खेल था। अकलंक : नहीं पिताजी! हमने वह प्रतिज्ञा खेल समझकर नहीं, अपितु सत्यभाव से ली थी।
पिताजी : पुत्रो ! भले ही तुमने सत्यभाव से प्रतिज्ञा ली हो तो भी वह केवल दशलक्षण पर्व जितनी ही थी, जो कि तभी पूर्ण भी हो गई, इसलिए अब विवाह करने में कोई अड़चन नहीं है।
निकलंक : पिताजी! हो सकता है, आपने उस समय हमारी प्रतिज्ञा मात्र दस दिन की ही समझी हो, परन्तु हमने तो हमारे मन