Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Author(s): Haribhai Songadh, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 35
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/३३ इंस्पेक्टर : जैसी आज्ञा ! ( इंस्पेक्टर जाता है। दृश्य बदलता है। विद्यार्थी कक्षा में पढ़ रहे हैं। गुरुजी वेगपूर्वक आकर क्रोध से कहते हैं ।) गुरु : चुप रहो ! सुनो !! कल इस पुस्तक में जैनधर्म के प्रकरण में 'स्यात्' शब्द नहीं था और उसे बाद में किसी ने लिखा है। जल्दी बताओ कि यह शब्द किसने लिखा है ? ( सारे विद्यार्थी भय से गुपचुप बन जाते हैं ।) गुरु : (उग्रता से बोलो ! तुम में से कोई बोलता क्यों नहीं है ? विद्यार्थी : ( सारे एक साथ) हमें कुछ मालूम नहीं है। गुरु : यह शब्द तुम में से ही किसी ने लिखा है। जिसने भी लिखा हो, वह सीधे तरीके से मान ले, अन्यथा मैं कठोर व्यवहार करूँगा। (कोई बोलता नहीं है, थोड़ी देर में पहले विद्यार्थी की ओर देखकर गुरुजी पूछते हैं ।) गुरु : बोल, तूने यह लिखा है? विद्यार्थी : जी नहीं, मैंने नहीं लिखा और किसने लिखा है ? यह भी मैं नहीं जानता । गुरु : (दूसरे विद्यार्थी से) बोल, तूने लिखा है ? विद्यार्थी : जी नहीं । (इसी प्रकार शेष सभी विद्यार्थियों से पूछते हैं, सारे विद्यार्थी 'जी नहीं' ऐसा कहते हैं। अंत में अकलंक से पूछते हैं) गुरु : बोल अकलंक! तूने यह लिखा है ? अकलंक : जी नहीं, मैंने नहीं लिखा है और किसने लिखा है ? यह भी मैं नहीं जानता ।

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