Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Author(s): Haribhai Songadh, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 26
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/२४ निकलंक : कहो न भाई! बोलते-बोलते कैसे रुक गये और किसकी चिंता में पड़ गये? अकलंक : भाई! क्या कहूँ अन्य चिंता तो हमें क्या हो? जीवन में केवल एक ही चिंता है कि जैन-शासन का जन-जन में प्रचार किस प्रकार हो? जगत्-कल्याणकारी जैन-शासन की वर्तमान हालत मुझसे नहीं देखी जाती। इस समय भारत में जगह-जगह एकांत मत का जोर चल रहा है, जैनधर्म तो भाग्य से ही कहीं दिखाई देता है, इसलिए इस समय तो जैनधर्म के प्रचार की ही खास चिंता है। निकलंक : हाँ भाई! मुझे भी जैनधर्म के प्रचार की बहुत ही भावना होती है, अत: आप कोई ऐसा उपाय सोचो कि जिससे भारतवर्ष में जैनधर्म का महान प्रभाव फैल जाए। अकलंक : हे भाई! मुझे एक युक्ति सूझी है और फिर पिताजी ने भी जैन-शासन के लिए जीवन बलिदान की आज्ञा दे ही दी है, इसलिए अब अपना रास्ता बहुत ही सुगम होगा। निकलंक : कहो भाई! कहो, वह युक्ति कौन-सी है? अकलंक : सुनो भाई! इस समय भारतभर में एकांत मत का बहुत बोलबाला है, इसलिए पहले तो हमें एकांत मत के शास्त्रों का

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