Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Author(s): Haribhai Songadh, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/२१ से पूरी जिन्दगी की प्रतिज्ञा ली थी और हम हमारी इस प्रतिज्ञा में अत्यन्त दृढ़ हैं, इसलिए आप कृपा करके हमारे विवाह की बात मत कीजिए।
पिताजी : हे पुत्रो! यदि तुम विवाह नहीं करोगे तो सारी जिन्दगी किस प्रकार बिताओगे?
अकलंक : पिताजी! हमने अपने जैनधर्म की सेवा के लिए सारा जीवन बिताने का निश्चय किया है।
निकलंक : वर्तमान में हमारा जैनधर्म अन्य धर्मों के प्रभाव से बहुत दब गया है, इसलिए उसके प्रचार की इस समय विशेष आवश्यकता है।
अकलंक : पिताजी! जब जैनशासन हमें आवाज देकर पुकार रहा है, तब हम विवाह करके, संसार के बन्धन में बंध जाएँ, क्या यह उचित है? नहीं.........नहीं।
निकलंक : हमें विश्वास है कि जैनधर्म के एक परम भक्त होने के नाते आप हमारी बात सुनकर प्रसन्न होंगे और जैनधर्म की सेवा में हमारा जीवन बीते- इसकी हमें सहर्ष आज्ञा प्रदान करेंगे। इतना ही नहीं, जैनधर्म के खातिर हमें अपने प्राणों का बलिदान करने का भी मौका मिले तो भी हंसते-हंसते हम अपने प्राणों का बलिदान देकर भी जैनधर्म की विजय-पताका जगत में फहरायेंगे। ___ (पर्दे के पीछे से तालियों की गड़गड़ाहट।)
पिताजी : शाबाश बच्चो! शाबाश!! जैनधर्म के प्रति तुम्हारी ऐसी महान भक्ति देखकर अब मुझसे तुमको रोका नहीं जाता। तुम्हारी इस उत्तम भावना में मेरी भी अनुमोदना है।
___अकलंक : पिताजी! हमें आशीर्वाद दो कि हमारा यह जीवन आत्मा के कल्याण के लिए व्यतीत हो, हम अपना आत्महित साधे और जैनधर्म की सेवा के लिए अपना जीवन अर्पित कर दें।
पिताजी : (प्रसन्नता से) जाओ, पुत्रो! जाओ, आत्मा का