Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 06
Author(s): Haribhai Songadh, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 17
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-६/१५ चन्द्र : बाकी अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव और बन्ध ये पांच तत्त्व रहे। ये पांचों तत्त्व हेय हैं। चन्द्र : वाह! आज सम्यग्दर्शन, पाप और हेय-उपादेय तत्त्व की बहुत ही सुन्दर चर्चा हुई। हम सबको इसके ऊपर गहरा विचार करके सम्यग्दर्शन का प्रयत्न करना चाहिए। निकलंक : हाँ भाईयो! सबको यही करने योग्य है। घर जाकर सब इस का ही प्रयत्न करना। इससे ही जीवन की सफलता है। (एक और पर्दा ऊँचा होने पर मुनिराज दिखाई देते हैं। बच्चे हर्षपूर्वक कहते हैं-) . स -- - .....:: .... ..:::. ..... . .. CON ................ ::Ham.:.:::.:. THE बच्चे : अहो, देखो! देखो!! कोई मुनिराजे बैठे हुए दिखाई दे रहे हैं। अकु-निकु : वाह! धन्य घड़ी! धन्य भाग्य!! चलो हम वहाँ जाकर उनके दर्शन करते हैं। .

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