Book Title: Jain Bhajan Tarangani Author(s): Nyamatsinh Jaini Publisher: Nyamatsinh Jaini View full book textPage 4
________________ जैन भजन तरंगनी। क्रोध जूवा मान लालच मांस मद्रा बेश्वा ॥ ऐसी बातों का त्याग बताया हमें ।। ३ ।। आत्मा परमात्मा में कर्म ही का भेद है ।।। काट दे गर कर्म तो कुछ खेद है ना भेद है। बनकर ईश्वर आप दिखाया हमें ॥ ४ ॥ सच्चिदानंद रूप हूं उसर कोई मुझमें नहीं। न्यायमत फिर कौनसा वस्फे खुदा मुझमें नहीं । तूने जल्या हकीकत दिखाया हमें ॥ ५ ॥ श्रीभगवान महावीर स्वामी की स्तुति । (चाल नाटक) यूए हर गुलमें परवरदिगार है। तेरी महिमा यह सबसे महान है-हा। जरे जर्रे का भी तुझको ज्ञान है—हां ॥ टेक ।। . ले हितंकरका अवतार आया यहां । .. तूने देखा कि है दुखमें सारा जहां। दुखी हर एक इन्सां हैवान है-हां ॥ १॥ . तुने मुक्ती का मारग दिखाया हमें। .. . . ___सुख शान्ती का रस्ता बताया हमें । सच्चा तुझमें दया का निशान है-हां ॥ २ ॥ दूर हिंसा का व्यवहार तूने किया ॥ .... ' दयामय धर्म परचार तूने किया।Page Navigation
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