Book Title: Jain Bhajan Tarangani
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 9
________________ जैन गमन तरंगनी। नहीं जगमें कोई सहाईजी तुम आन बंधाओ धीर ।। २ ।। - अब शिव मारग दर्शा दो। - मोहे सीधे घाट लगादो। न्यामत का भरम गिटादोजी जो हटे करम की पीर ॥ ३ ॥ चाल-दोहा। शिव कारण सब सुख करन, सम्यक दर्शन रूप । विधन हरण मंगल करन, पावन शुद्ध सरूप ॥ १ ॥ सम्यक दर्शन ज्ञान युत, शुद्धातम सुखकार । जग भूपण दूषण रहित, सब जीवन हितकार ॥२॥ निजानन्द रस लीन नित्य, वीतराग भगवान । शिवमारग दर्शाय के, किया जगत कल्याण ॥३॥ भरम हरण निर्भय करन, जगनायक जगमान बंदूं जग चूडामणी, जिन पारश भगवान ॥ ४ ॥ चाल-( लायनी) बीतराग सर्वज्ञ हितंकर सब जग जीवन सुखकारी। ज्ञान प्रकाशक तिमर विनाशक तु दुखहारी हितकारी ॥१॥ तीन भवन में रतन अमोलक विद्या तुमने सिखलाई । चौदा विद्याकला वहत्तर जो दुनिया में सुखदाई ॥२॥ स्यादवाद और नय प्रमाण से मिध्या मतका नाश किया।

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