Book Title: Jain Bhajan Tarangani
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 25
________________ जैन भजन तरंगनी । करम बलवान दुनिया में किसी की कुछ नहीं चलती । उर्दू सब हो गए क़ायल मुबारक हो मुबारक हो ९ ॥ जुलम से सीनाजोरी से कोई चाहे जो कुछ करले । विजय आखिर धरम की है मुबारक हो मुबारक हो १० ॥ यूनियन जैक ने अपना किया है आज सर ऊंचा । बंधा सेहरा विजय का जार्ज पंजुम के मुबारक हो ११ ॥ प्रेजीडेंट विलसन सा सुलहकुन हो तो ऐसा हो । मिटा दिया खदशा एकदम मुबारक हो मुबारक हो १२ ॥ हिन्द के भी जवां मरदों ने ऐसे हाथ दिखलाए । किया लाचार जर्मन को मुबारक हो मुबारक हो १३ ॥ हिन्द के जाट सिख मुस्लिम गए मैदान में जिस दम । उसी दम हो गई नुसरत मुबारक हो मुबारक हो । १४ बदी का और नेकी का नतीजा देखिये न्यामत | विजय आखिर हुई अपनी मुबारक हो मुबारक हो १५. २८ यह भजन सुपुत्र राजकुमार ने बनाया था || चाल - कौन कहता है कि मैं तेरे खरीदारों में हूं ॥ एक दिन एक राजवंशी था गया बहरे शिकार । प्यास से लाचार हो करने लगा ऐसे विचार १ | क्या करूं पानी कहीं मुझको नजर आता नहीं | प्यास मुझको लग रही वोला जरा जाता नहीं २ ॥ १ वैरो २ जीत २३

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