Book Title: Jain Bhajan Tarangani
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 23
________________ जैन भजन तरंग। बस्तियां रस्ते में आई सबकी सब गाव हैं। क्या बशर हैवान सब तूफान में बेताब हैं । कोई कश्ति लगाकर लंघा दो हमें ।। ४ ।। .. पुल शिकसता हो गए और वंद पुश्ते टूटकर । मिट गए मटिया खिलौनों की तरह सब फूटकर ।। कोई बल्ली लगाकर बचा दो हमें ॥ ५॥ देखलो मँझधार में बेहोश इन्सां जा रहे । कोई जिन्दा कोई मुर्दा सब परीशां जा रहे । कोई थाम सके तो थमादो हमें ॥ ६ ॥ भेड़ बकरी का पता किसको भला इस आन में । गाएँ भैंसों का ठिकाना है नहीं तूफान में । कोई आ करके धीर बँधादो हमें ७॥ वह गई औरत कही बच्चे कहीं और खुद कहीं। माल धन सब वह गया पानी तले घर की जमी। कोई विछड़ों को लाके मिला दो हमें ॥८॥ मुर्दे हिम्मत हैं खड़े खतरे में जां को डालकर । दे रहे हैं झोलियां दरिया में रस्से डालकर ।। न्यामत ऐसों के दरश दिखा दो हमें ॥ ९॥ ' - - - - - -- - - - १ पानी में इस गई २ मनुष्य ३ पशु ४ पानी का रेला ५ हट गप ६मनुर ७ ये धन समय हस्यं १० पृथ्यो । वहादुर तारा करना।

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