Book Title: Jain Bhajan Tarangani
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 21
________________ जैन भजन तरंगनी। रहा मंगी के घर मुरदे जलाए जा मसानों में ।। विके रोहतास तारा जब तजा पद हरीश्चन्दर ने।६। ५-ऐतिहासिक भजन। २५ गोर-तती तिलकासुन्दरी का अपने पापी देवर पधुश्त को समझाना और शोल की महिमा दिखाकर अपने शील को यचाना। घाल नाटक-पीहरवा उठी कलेजे पार । दोहा-शील हितेपी जीव का शील गुणों की खान । शील कभी नहीं खडिये जब लग घट में प्राण ।। परनारी पैनी छरी शहद लपेटी जान । सुखदाई मत जानियो छूवत हर ले प्राण । देवरिया कहो हमारो मान-हमारा मत कर तू अपमान । छोड़ो झगड़या-छांडो अँगुरिया। मैं हूँ दुधारी कटार । देवरिया कह्यो हमारो मान १ दोहा-और जो तू माने नहीं हा पापी हा नीच । प्राण तजूं मैं अपने पड़े समन्दर वीच । . मैं हूँ सती शिरोमणी जैन धरम मैं लीन । तू सूनी मत जानियो अरे अधम अवलीन |

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