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जैन भजन तरंगनी
३८
चाल - माधो घनश्याम को मैं ढूंढन चली री ।
३३.
अपने धरम की मैं विद्या पढूंगी || विद्या पढूंगी सुशिक्षित वनूंगी ॥ टेक ॥
क्या धन दौलत वस्त्र भूषण और क्या ऊंचे मंदिर || विद्या हीन पशु सम नारी चाहे वनी हो सुंदर || मैंतो -विद्या का ही शृंगार करूंगी ॥ १ ॥
विद्या पढ़कर पंडित वनकर धर्म उपदेश सुनाऊं ॥ जो मेरी बहने मूरख हैं सबको सुधी बनाऊं । न्यामत-विद्या का जा परचार करूंगी || २ |
३९
चाल सी सावन यहार साई भुतार जिसका जी चाहे ।
घड़ी मेरी सखी है जो समय मुझको बताती हैं । वक्त पर पहोंच जाने की मुझे शिक्षा सुनाती है ॥ १ ॥ खेल में कूदमें में भूल जाती हूं जो काम अपना । तो टिक टिक शब्द करके यह घड़ी घंटी बजाती है ॥ २ ॥ वक्त पर काम करना सीख लो पर्माद को त्यागो । कहे न्यामत सुना बहनो घड़ी तुमको जिताती हैं ॥ ३ ॥
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