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जैन भजन तरंगनी |
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कोई दरिया नहर कुवां भी नजर आता नहीं | गर करूं तो क्या करूं पानी कहीं पाता नहीं ॥ ३ ॥ जां लबों पर आ रही है शहर से भी दूर हूं || प्यास से लाचार हूं चलने से चकनाचूर हूं ॥ १ ॥ हो गया जब इस तरह लाचार पानी के लिये | तब पढ़ा नवकार मन्तर उसने पानी के लिये ॥ ५ ॥ बस उसी दम आ गया इक देवता उसके लिये | दे गया उसको उसी दम पानी पीने के लिये ॥ ६ ॥ याद रखो हर घड़ी हर दम सदा नवकार को । हो गया है इसका निश्चय आज राजकुमार को ॥ ७ ॥
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यह भजन प्रियं सूरजभान जैन ( लाला जुगल किशोर जैन रईस हिसार के पौत्र और लाला कुडुमल के पुत्र ) के व्याह के समय बनाया था जो उसने अपनी, सुसराल (नजीबाबाद ) में पढ़ा था - वरात जेठ के महीने में लाला विमलप्रसाद जैन रईस नजीवाद के यहां गई थी यह भजन ता० २८ अप्रिल सन् १९२३ को घुड़चरी के समय सूरजभान की प्रार्थना पर बनाया गया था ।
(चाल) सत्र पढ़ जाएगा एक दिन चुलबुले नाशाद का ।
है मुबारक आज का दिन क्या बहार आई हुई || हर तरफ़ है शादमानी की घटा छाई हुई || १ || क्यों नजीबाबाद नज़रों में हुवा जन्नत निशां ॥ हां बिमलप्रसाद के घर है बरात आई हुई || २ | आज से इसको अजीबाबाद कहना चाहिये ||