Book Title: Jain Bhajan Tarangani
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 16
________________ १४ Šta na nái १८ ह ( चाल ) कौन करता चाहे गरमी से बरफ इकदम पिघलना छोड़ दे । चाहे पूरव से कभी सूरज निकलना छोड़ दे ॥ १ ॥ पानी सरदी छोड़ दे और आग गरमी छोड़ दे || संग सख्ती छोड़ दे और मोम नरमी छोड़ दे | २ | चाहे बुलबुल बाग में जाकर चहकना छोड़ दे । चाहे बिजली बादलों में आ चमकना छोड़ दे | ३ | पूर्व में शुकर सितारा टिमटिमाना छोड़ दे || चाहे उत्तर में घुरू अपना ठिकाना छोड़ दे ॥ १ ॥ न्यायमत वह है अवम जो प्रण निभाना छोड़ दे || मैं नहीं छोडूं धरम चाहे जमाना छोड़ दे | ५ | :0: ४ - जीवनधर नाटक संबंधी भजन । :0: नोट- जीवनधर चरित्र जैन शास्त्र के अनुसार धर्मवीर जीवनधर नाक तय्यार किया जा रहा है जो शीघ्र ही छपकर प्रकाशित होना यह भजन इसी नाटक के सम्बन्ध में हैं | अर्थात् रानी विजियासुन्दरी ( जीवनधर की माता ) ध मंत्री को राजा सत्यघर को राजनीति समझाना और काप्रागार (लकड़ हारा ) को राज देने से रोकना ॥ १९ रानी का राजा को समझाना । (बाल) खुदाया कैसी मुसीबतों में यह ताजवाले पड़े हुए हैं । प्रभू से हरदम यही दुआ है कि मुझको प्यारी स्वतंत्रता हो । १ प्रार्थना |

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