Book Title: Jain Bhajan Tarangani
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 14
________________ जैन भजन तरंगनी। (चाल पंजायी ) अड़ गई अड़ गई हो हो जिंदड़ी अड़ गई नाल कृश्न के। फिर गई फिर गई हो हो, पछवा फिर गई देख जगत में ।।टेका। देष करे भाई से भाई-बात बात में करे लड़ाई ।। झूट कपट जाने चतुराई-~~-फूट अटरिया चढ़ गई हो। पछवा फिर गई देख जगत में | फिर गई० ॥ १॥ कलयुग खोटा पहरा आया-क्रोध लोभ हृदय में छाया । हिंसा करम सभी मन भाया-नाव भमरिया पड़ गई हो। पछवा फिर गई देख जगत में। फिर गई० ॥ २ ॥ विद्या हीन भए नर नारी-बन गए सारे पापाचारी। कौन करे भाई रखवारी-खेत को चिड़ियां चुग गई हो। पछवा फिर गई देख जगत में | फिर गई० ॥ ३ ॥ न्यामत दया धरम नहीं जाने-गुरू बचन चेला नहीं माने। ना कोई पंडित ना कोई स्याने-भांग कूचे में पड़ गई हो। पछवा फिर गई देख जगत में । फिर गई० ॥ ४ ॥ ( चाल ) सखी सावन बहार चाई झुलाए जिसका जी चाहे । दिला क्यों रंजोराम करता है क्यों मरने से डरता है। वही होता है बस जो कुछ करम इजहार करता है ॥ १ ॥ करम बलवान है जग में नहीं टारे से टलता है। यकीन करले बिन आई नहीं कोई भी मरता है ।। २ ॥

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