Book Title: Jain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan Author(s): Dilip Dhing Publisher: Prakrit Bharti Academy View full book textPage 5
________________ परिच्छेद दो 42-50 - सम्यग्दर्शन की प्राप्ति दान से - अर्थशास्त्र के आदि संस्थापक ऋषभदेव - असि, मसि व कृषि - विद्या, वाणिज्य व शिल्प - आगमों में अर्थशास्त्र के सन्दर्भ : पुरुषार्थ चतुष्टय और अर्थ - चार पुरुषार्थ - धर्म और अर्थ - काम और अर्थ - मोक्ष और अर्थ - चारों पुरुषार्थों के अन्तर्सम्बन्ध - अर्थ पुरुषार्थ की महत्ता - वैषम्य निवारण में पुरुषार्थ - अर्थ के उपयोग की दृष्टियाँ - ‘दव्व' शब्द का अर्थ - अर्थोपार्जन की तीन दृष्टियाँ - दान - निवेश और व्यवसाय विस्तार : अर्थोपार्जन के मुख्य साधन . - अर्थोपार्जन में पर्यावरण दृष्टि - अर्थोपार्जन के मुख्य साधन परिच्छेद तीन 51-65 - वन-सम्पदा - खनिज सम्पदा - जल सम्पदा - भू-स्वामित्व - श्रम (मानव संसाधन) - श्रम और दास प्रथा - श्रम विभाजन - पूंजी (iv)Page Navigation
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