Book Title: Jain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Author(s): Dilip Dhing
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ अनुक्रमणिका XV प्रकाशकीय शास्त्र और अर्थशास्त्र (लेखकीय) गम्भीर प्रस्तुति (पुरोवाक्) xvii अध्याय प्रथम : आगम साहित्य का मूल्यांकन परिच्छेद एक : आगम - अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य .2-12 - परिचय और परिभाषा - अंगप्रविष्ट आगम - द्वादशांगी - अंगबाह्य आगम - बारह उपांग परिच्छेद दो : मूल-सूत्र, छेद-सूत्र, प्रकीर्णक और व्याख्या साहित्य 13-23 - मूल सूत्र - छेद सूत्र . . - प्रकीर्णक साहित्य - नियुक्ति साहित्य - भाष्य साहित्य - चूर्णि साहित्य - टीका साहित्य परिच्छेद तीन : शौरसेनी आगम साहित्य 24-32 - षटखण्डागम - कुन्कुन्दाचार्य का साहित्य . - अन्य ग्रन्थ - चार अनुयोग अध्याय द्वितीय : जैन परम्परा में अर्थ-विचार 33-89 परिच्छेद एक : अर्थ सम्बन्धी अवधारणाएँ 34-41 - कर्मभूमि और अर्थ - श्रमण संस्कृति और श्रम - तीर्थंकर की माँ के लक्ष्मी और रत्नराशि के स्वप्न

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 408