Book Title: Hindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Author(s): Sushma Gunvant Rote
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 8
________________ वर्द्धमान की हैं। उसके पश्चात ऋषभ, पार्श्व और अरिष्टनेमि की प्रतिमाओं का क्रम लगता है। उस काल तक ये चार तीर्थंकर प्रमुख रूप से मान्य थे और 'कल्पसूत्र' में इन्हीं के सम्बन्ध में साहित्यिक विवरण प्राप्त हैं। महावीर के सम्बन्ध में एक अभिलेख उनके निर्वाण के 84 वर्ष पश्चात् का बडली, राजस्थान से प्राप्त है। भगवान महावीर विषयक यह अभिलेख अतिप्राचीन और सर्वप्रथम है। विद्यानन्द मुनि को एक अभिलेख सेठ भागचन्द सोनी के सौजन्य से प्राप्त हुआ है। इस सन्दर्भ में मुनिजी का कथन है- “ “मियाण' नामक ग्राम में, जो अजमेर से 32 मील दूर है, पण्डित गौरीशंकर हीराचन्द ओझा (अजमेर के पुरातत्त्वान्वेषी) ने एक किसान से पत्थर प्राप्त किया, जिस पर वह तम्बाकू कूटा करता था। पत्थर पर ओंकेत कुछ अक्षर थे, जिन्हें उन्होंने पढ़ा, अक्षर प्राचीन लिपि में थे, वे अक्षर थे-- "विसय भगवताय चतुरसीतिवस काये सालामालानियरंनि विठ माझामिके"... । अर्थात् महावीर भगवान से 84 वर्ष पीछे शालामालिनी नाम के राजा ने मज्झमिका नामक नगरी में, जो कि पहले मेवाड़ की राजधानी थी, किसी बात की स्मृति के लिए यह लेख लिखवाया था। यह शिलालेख वीर निर्वाण के 84 वर्ष बाद लिखाया गया है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि पहले से ही वीर निर्वाण संवत् प्रचलित था और लेखादि में उसका उपयोग किया जाता था। उक्त शिलालेख अजमेर म्यूजियम में सुरक्षित है। शिलालेखों में भगवान महावीर पाषाण-शिलाओं-मूर्तियों में महाबीर-चरित्र विपुल मात्रा में प्राप्त होता है। "खण्डगिरि, उदयगिरि के हाथीगुम्फा वाले शिलालेख विशेष मात्त्वपूर्ण हैं। बडली (राजस्थान) से प्राप्त महावीर विषयक शिलालेख अतिप्राचीन है जिसे काशीप्रसाद जायसवाल ने 374 ई. पू. का पाना है। महावीर का प्रथम उपदेश विपुल पर्वत पर हुआ था। विपुल पर्वत पर उकेरा हुआ शिलालेख पूर्ण तो नहीं है, किन्तु उसका निम्न भाग शेष है जो श्रेणिक से सम्बन्ध रखता है, जिस पर स्पष्ट लिखा है-“पर्वती विपुल-राजा श्रेणिक" अतः यह स्पष्ट है कि यह उल्लेख राजा श्रेणिक का महावीर के समवसरण में जाने के सम्बन्ध में हैं। कंकालीटीला मथुरा से महावीर विषयक अनेक शिलालेख प्राप्त हुए हैं उनमें स्ततियाँ वर्णित हैं।...नमो अरहतो बर्द्धमानस।। "दानसाले के (1108 ई.) चालुक्य सामन्त महामण्डलेश्वर सान्तारदेव, जो भगवान पार्श्व के वंश में जन्मे थे, उनके शिलालेख में महावीर के तीर्घ और गौतम 1. डॉ. सागरमल जैन : अर्हत् पाश्च और उनकी परम्परा, पृ. 1,2 2. विद्यानन्द मनि : तीर्थकर वर्द्धमान, पृ. 2 3. जनन ऑफ़ द विहार एण्ट उड़ीसा रिसर्च सोजावटो, भा. [6 (1930), पृ. 67.68 14 :: हिन्दी के पहाकाव्यों में चित्रित भगवान महाबोर

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