Book Title: Hindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira Author(s): Sushma Gunvant Rote Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 7
________________ हिन्दी महाकाओं में वर्णित भगवान महावीर की जीवनी पौराणिक, ऐतिहासिक एवं रोमाण्टिक शैलियों में प्रस्तुत की गयी है। इन महाकाव्यों में वर्णित भगवान महावीर का जीवनवृत्त कहाँ तक प्रामाणिक एवं ऐतिहासिक सत्यता को लेकर चित्रित हुआ हे, इस तथ्य के अनुशीलन के लिए भगवान महावीर की जीवनी के विविध स्त्रोतों का विवेचन प्रस्तुत किया जाता है। भगवान महावीर की जीवनी के विविध स्रोत ऐतिहासिक दृष्टि से भगवान महावीर की वास्तविक एवं प्रामाणिक जीवनी के अध्ययन की सामग्री विविध तरह की हैं। प्राचीन शिलालेख, भगवान महावीर की प्राचीनतम मूर्तियाँ, बौद्ध-त्रिपिटक ग्रन्थ, महावीर समकालीन ऐतिहासिक पुरुष, जैन साहित्य- आगम-प्राकृत संस्कृत - अपभ्रंश - प्राचीन हिन्दी साहित्य आदि में महावीर-जीवनचरित्र विषयक सामग्री प्राप्त होती है। अतः उपर्युक्त स्रोतों का विवेचन क्रमशः संक्षेप में प्रस्तुत किया जाता है । अभिलेखों में भगवान महावीर भगवान महावीर की जीवनी के कुछ निर्देश जैन अभिलेखों में मिलते हैं। डॉ. कस्तूरचन्द जैन 'सुमन' के शब्दों में- “जैन अभिलेख दो तरह से उत्कीर्ण मिलते हैं, पाषाण पर और धातु- फलकों पर पाषाण पर मिलनेवाले अभिलेख प्रतिमाओं के आसन पर प्रतिमाओं के पृष्टभाग पर तीर्थंकर एवं आचार्यों के चरण- चिह्नों पर, स्तम्भ, गुफा, मानस्तम्भ, मन्दिर की वेदिका, चौकोर शिलाफलक, ध्वजस्तम्भ इत्यादि पर उत्कीर्ण हैं। धातुफलक ताम्रपट, पीतल एवं गिलट धातु से निर्मित प्रतिमाओं, मेरु, यन्त्रलेख, सिद्ध प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण हैं। ये अभिलेख सामाजिक आधार पर राजनीतिक अभिलेख एवं सांस्कृतिक अभिलेख दो भागों में विभाजित हैं । " ये अभिलेख भगवान महावीर के जीवनवृत्त के कुछ निर्देशों को जानने, समझने के लिए प्रामाणिक स्रोत हैं। जैनधर्म के तीर्थकरों में भगवान महावीर ही ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिनकी ऐतिहासिकता निर्विवाद रूप से स्वीकार की गयी है। सामान्यतः किसी व्यक्तित्व की ऐतिहासिकता का निश्चय करने के लिए अभिलेखीय और साहित्यिक साक्ष्य महत्त्वपूर्ण होते हैं। भारत में अभी तक पढ़े जा सके जो भी प्राचीनतम अभिलेख उपलब्ध हुए हैं वे मौर्यकाल के हैं। डॉ. सागरमल जैन लिखते हैं मौर्यकालीन मथुरा 'के अभिलेखों में तीर्थंकर भगवान शब्द का प्रयोग नहीं है, अपितु उसके स्थान पर 'अर्हत्' शब्द का प्रयोग है, यथा अर्हत् वर्द्धमान, अर्हतु पार्श्व आदि । मथुरा में ईसा की प्रथम शताब्दी की उपलब्ध प्रतिमाओं में सर्वाधिक प्रतिमाएँ 1. शोधादर्श, अंक 27. पू. 268 भगवान महाशेर की जीवनी के खांन :: 13Page Navigation
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