Book Title: Heervijay Suri Jivan Vruttant Author(s): Kanhaiyalal Jain Publisher: Atmanand Jain Tract Society View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [४] शास्त्र पठन पाठन में मुनिवर ने एकान्त लगाया ध्यान, कुछ ही दिन पश्चात 'देव गिरि' के प्रति करना पड़ा प्रयाण । उपाध्याय जी वहां 'धर्म सागर' थे विज्ञ और विद्वान ।। *इन्हें उन्हों ने न्याय शास्त्र पारंगामी कर दिया निदान ।। तभी लौट कर सीधे मुनिवर आये मातृ भूमि गुजरात, ब्रह्म-अनल-कन्या शशि इसा सम्बत की पर है यह बात । जब श्री हीर विजय जी ने थी वाचक की पदवी पाई, + ताप-अनल-कन्या-रवि में पर सूरि होगये सुखदायी ।। (१२) उनकी विद्वत्ता की गाथा अकबर के जब पहुंची पास, उन्हें देखने को तब उसके मन में बढ़ा अती वोल्लास । “मोदी' और 'कमाल' नाम के कर्मचारियों को फरमान दे, अकबर ने नगर अहमदाबाद कराया तभी प्रयाण ।। * श्री हीर विजयजी को। $ १५५१. + १५५३. For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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