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(७०) हमी नहीं, उनके आभारी अन्य मती भी सारे हैं, श्रद्धा भक्ति भाव मुनिवर प्रति जो निज मन में धारे हैं क्यों कि न केवल पशु हिंसा की कमी हेतु उद्योग किया, संस्कृत की साहित्य वृद्धि हित भी था पूरा योग दिया ।
(७१) उनका हम अभिनन्दन करते अभिनन्दन करते हैं फेर क्यों कि जिन्हें था दुष्कृतिने यों डाला गौरव गिरिसे गेर ।। कर गह कर उनको ही मुनिवर ज्ञानी ने था किया सचेत नमस्कार करते हम उनको सविनय श्रद्धा लह समेत ।।
(७२) हैं उच्च पुरुषों के महत् जीवन यही सिखला रहे, निज नेत्र पट खोलो लखो प्रत्यक्ष वे दिखला रहे । “जो हैं परिश्रम-शील मानव उच्च होते हैं वही, पर-हित सतत करते अहो ! उद्देश जीवन का यही ।।
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