________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[२२]
(६४) सज्जन, उच्च, दुष्ट लघु सारे कवलित हुए तुम्हीं से काल, ऋषि, मुनि, राजा, व्रती, तपस्वी को न छोड़ता तेरा व्याल । नद प्रवाह भी रुक सकता पर तेरी गति अनिवार्य अरोक, खेद व्यथा सन्ताप यन्त्रणा, तुम में सभी समाते शोक !!
अस्तु-ऋषभ जिन-मन्दिर में है शिला लेख इक अति विस्तीर्ण संस्कृत-पद्य मयी रचना में किया हुआ है वह उत्कीर्ण । उसके पढ़ने से विद्वद्गण को पड़ता है यह ही जान, हीर विजय का अकबर के दरबार मध्य था अति सम्मान ।।
शिला लेख में उनके ही गुण गण-गरिमा का है वृत्तान्त उनकी विद्वत्ता की अब तक उड़ती जय ध्वजा दुर्दान्त। धन्य धन्य !! मुनिवर ज्ञानेश्वर ! गौरव गरिमा के भण्डार, धन्य अहिंसा व्रत-पाली मुनि-गण-गणना-अग्रणी उदार!
For Private And Personal Use Only