Book Title: Heervijay Suri Jivan Vruttant
Author(s): Kanhaiyalal Jain
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२०] (२८) विद्वत्ता पर मुग्ध शाह ने लख कर यह पाण्डित्योत्कर्ष 'स्वामी' पदवी श्री मुनिवर को अकबर ने की दान सहर्ष । 'विजयरत्न' ने 'भानुचन्द्र' को उपाध्याय पद किया उदार, इसका उत्सव किया गया-भूतल पर आया स्वार्गागार ।। (५६) इस से अबुलफजल ने पाकर अत्यानन्द और संतोष, +छै सौ रुपया, अश्वदिये कहता है यही कृपा रस कोश । स्विर-वसु-कन्या चन्द्र ईसवी सम्वत् था जब अति सुखकार, चतुर्मास्य रहना पाटन में किया भूरिजी ने स्वीकार || *वसु-वसु-पूर-शशि ईसा सम्बत् पर जब आया सौख्य निधान शाह सुवर्णिक तेजपाल ने की दो प्रतिभा उन्हें प्रदान । श्री 'सुपार्श्व' विभु ओ 'अनन्त' प्रभुवर की प्रतिभा थीं सुपवित्र, उसी अब्द उनकी गुनिने की सुखद प्रतिष्ठा विविध विचित्र।। + शेखो रूपक षट् शती व्यति करे तत्राश्च दानादिभिः । । १५८७ For Private And Personal Use Only

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