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(२८) विद्वत्ता पर मुग्ध शाह ने लख कर यह पाण्डित्योत्कर्ष 'स्वामी' पदवी श्री मुनिवर को अकबर ने की दान सहर्ष । 'विजयरत्न' ने 'भानुचन्द्र' को उपाध्याय पद किया उदार, इसका उत्सव किया गया-भूतल पर आया स्वार्गागार ।।
(५६) इस से अबुलफजल ने पाकर अत्यानन्द और संतोष, +छै सौ रुपया, अश्वदिये कहता है यही कृपा रस कोश । स्विर-वसु-कन्या चन्द्र ईसवी सम्वत् था जब अति सुखकार, चतुर्मास्य रहना पाटन में किया भूरिजी ने स्वीकार ||
*वसु-वसु-पूर-शशि ईसा सम्बत् पर जब आया सौख्य निधान शाह सुवर्णिक तेजपाल ने की दो प्रतिभा उन्हें प्रदान । श्री 'सुपार्श्व' विभु ओ 'अनन्त' प्रभुवर की प्रतिभा थीं सुपवित्र, उसी अब्द उनकी गुनिने की सुखद प्रतिष्ठा विविध विचित्र।।
+ शेखो रूपक षट् शती व्यति करे तत्राश्च दानादिभिः । । १५८७
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