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(६७ ) तुमने प्रभु! वे कर्म किये जो बने जाति के हित आदर्श, तुमने वह उपदेश दिये जो कर जाते थे मर्मस्पर्श । तुमने ऐसी छाप जमाई जो कि यहां फिर हट न सकी, तुमने ऐसी ज्योति-बिछाई जो रजनी में घट न सकी ।।
(६८)
तुमने क्या क्या किया अस्तु-हम यह कहने के योग्य नहीं दीपक रवि की ओर दिखाना लगता कभी मनोज्ञ नहीं। उन हृदय में ज्ञान-सूर्य का हुआ छटा का जो उद्भाव, वही शाह के सम्मुख निकला बना अहिंसा का प्रस्ताव ।।
(६६) और वही प्रस्ताव समाप्त किया स्वयं श्री अकबर भूप, जिसका अकबर नृपति-राज्य सीमा में हुआ प्रकाशित रूप इस से हम श्री मुनिवर का कुछ मान न सकते कय उपकार सच पूछो तो एक तरह से किया जैन का पुनरुद्धार ।।
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