Book Title: Heervijay Suri Jivan Vruttant
Author(s): Kanhaiyalal Jain
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१८] (५२) इस से उनको अकबर ने दी 'खुश हेम' पदवी सुखकार, सिद्धि चन्द्र ने जिसे किया था सविनय और सहर्ष स्वीकार । और विदित होता है इस से 'भानुचन्द्र' ने भूपति की, 'सूर्य सहस्त्रनाम' संस्कृत पुस्तक में अकबर की गति की ।। तथा उन्होंने कह कर उत्तम एक कर्मा का श्रेयलिया, शत्रुञ्जय के यात्रि गणों पर से कर उठवा तभी दिया । किन्तु कार्य यह हीर विजय के परामर्श से किया गया, आवश्यक इस हेतु उन्हों का काशमीर को गमन भया ।। किन्तु उक्त घटनाओं का जब बंधा हुआ था ऐसा तार, *राम-अंक-कन्या-पृथ्वी का ईसा सम्बत् था सुख कार । विजयसैन मूरि को बुला कर तब अकबर ने रक्खा पास, धाम्मिक चर्चाओं में उनका लगा बीतने वह सहवास ॥ For Private And Personal Use Only

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