Book Title: Heervijay Suri Jivan Vruttant
Author(s): Kanhaiyalal Jain
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Ur.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [६] ( २५ ) सृष्टि का अस्तित्व अत: है केवल वन्ध्या पुत्र समान, है निर्लेप निरीह और गतराग द्वेष जगपति भगवान । अबुलफज्ल सुनकर प्रसन्न हो बोला "तब तो नाथ अहो ! मुस्लिम धर्म पुस्तकों में हैं तथ्यतर भी बात कहो ?" (२६) अकबर को अवकाश मिला जब तभी बुलाए मूरि गए, वे आज्ञानुसार उपस्थित जा अकबर के निकट भए । "कहो गुरूजी चंगे तो हो" कह अकवर औ गहकर हाथ, उनको अपने महलों भीतर तभी लेगया अपने साथ ॥ वहां मुरिजी को शैय्या पर सादर आसन और दिया, पर मुनीन्द्र ने वस्त्रों पर पगरोपण अस्वीकार किया । अकबर ने तब इसका कारण पूछा मान अतीवाश्चर्य, तब "मुनि को विस्तर निषेध"का मुनि ने समझाया तात्पर्य ।। For Private And Personal Use Only

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