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( २२ )
भू में पड़े हुए बीजों का ज्यों पृथ्वी करती फल दान, उस प्रकार कृत पुण्य और पापों का फल देगा भगवान । कुछ जावेंगे स्वर्ग -- वहां वे सब सुख पावेंगे स्वर्गीय, कुछ जावेंगे नरक--जहां भोगेंगे दु:ख अनिर्वचनीय ||
( २३ )
ये कुरान की बातें हमको कृपा करो बतलाओ तुम, सब सच है या निर्मूलक ही हैं केवल आकाश कुसुम । यह सुनकर पूर्वोक्त कथन का किया श्लोक द्वारा खण्डन, "सृष्टि अनादि अनन्त नित्य है" और किया इसका मण्डन ।
( २४ )
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ईश्वर कर्ता नहीं, न कोई पैदा करता है संसार, स तथैव इसका कोई कभी न कर सकता संहार । जीवन स्थिति में विभिन्नताएं हमें दीखती हैं जो नित्य, वे केवल फल हैं जो देते हम को पूर्व जन्म कृत कृत्य ॥
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